वाराणसी में भगवान जगन्नाथ के कपाट खुले, 15 दिन बाद भक्तों को हुए दर्शन; रथयात्रा मेला 27 जून से होगा शुरू
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में सोमवार सुबह भगवान जगन्नाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। 15 दिनों के अंतराल के बाद भक्तों को भगवान के प्रथम दर्शन हुए। यह अवसर भक्तों के लिए अत्यंत भावुक और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देने वाला रहा। आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि (25 जून) को प्रातः 5 बजे मंदिर के प्रधान पुजारी राधेश्याम पांडे ने विधिवत पूजा-अर्चना के साथ भगवान का श्वेत वस्त्र और फूलों से श्रृंगार कर पंचामृत का भोग अर्पित किया और भव्य आरती की।
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भगवान को 15 दिन पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा को अत्यधिक जलाभिषेक के कारण “बीमार” घोषित किया गया था। तब से प्रतिदिन काढ़े का भोग लगाकर भगवान के स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना की जा रही थी। सोमवार को स्वास्थ्य लाभ के बाद भगवान को परवल के जूस का भोग लगाया गया और पंचामृत का प्रसाद भक्तों में वितरित किया गया।
डोली यात्रा 26 जून को, रथयात्रा 27 से 29 जून तक
काशी की प्राचीन परंपरा के अनुसार, 26 जून को भगवान जगन्नाथ अस्सी स्थित मंदिर से डोली में सवार होकर भगवान द्वारकाधीश से मिलन के लिए प्रस्थान करेंगे। इस डोली यात्रा में विशेष आकर्षण के रूप में पुरी (ओडिशा) स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर से मंगाए गए 201 धार्मिक ध्वज भी लहराएंगे। इनमें सबसे बड़ा ध्वज डोली यात्रा के आगे-आगे चलेगा जबकि शेष छोटे ध्वज भक्त अपने हाथों में लेकर चलेंगे। भजन-कीर्तन, डमरू दल और शंखनाद के साथ यात्रा संगीतमय माहौल में निकाली जाएगी।
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इसके बाद 27 जून से लेकर 29 जून तक तीन दिवसीय रथयात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ भव्य रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे और भक्तों को दर्शन देंगे। यह परंपरा लगभग 350 वर्षों से काशी में निभाई जा रही है।
जिला प्रशासन ने की व्यापक तैयारी
रथयात्रा के लिए जिला प्रशासन ने पूरी तैयारियां कर ली हैं। सुरक्षा व्यवस्था, मार्गों की सफाई, सजावट और श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
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सैकड़ों वर्ष पुराने ऐतिहासिक रथ को श्रद्धालु खींचते हैं, जिसमें भाग लेना भक्तों के लिए पुण्य प्राप्ति का अवसर माना जाता है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु पुरी नहीं जा पाते, वे काशी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर वही पुण्य प्राप्त करते हैं।