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मिंट हाउस से निकली आवाज़ जिसने पूर्वांचल को झकझोर दिया.....

पूर्वांचल की सामाजिक, राजनीतिक और पत्रकारिता की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय के साथ इतिहास बन जाते हैं। ऐसे ही एक नाम हैं बाबू भूलन सिंह। 28 दिसंबर 1993 को उनके निधन के साथ ही पूर्वांचल ने केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक पूरे युग को खो दिया। हृदय गति रुकने से भले ही उनका पार्थिव शरीर शांत हो गया, लेकिन उनके विचार, सिद्धांत और कार्य आज भी समाज को दिशा दे रहे हैं। उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर बाबू भूलन सिंह को नमन करना पूर्वांचल के प्रत्येक नागरिक के लिए सम्मान और गर्व का विषय है।

संघर्ष से नेतृत्व तक का सफर

बड़ागांव से निकलकर वाराणसी तक का बाबू भूलन सिंह का सफर संघर्ष, संकल्प और सामाजिक चेतना की मिसाल है। नदेसर स्थित मिंट हाउस उनके लिए केवल कार्यालय नहीं था, बल्कि वह स्थान था, जहां से पूर्वांचल की पत्रकारिता, सहकारिता और राजनीति को दिशा मिलती थी।

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उस दौर में जब निर्भीक पत्रकारिता जोखिम से भरी थी, तब बाबू भूलन सिंह ने बिना किसी दबाव के सच को सामने रखने का साहस किया।

सच्चाई और निष्पक्षता की नींव

बाबू भूलन सिंह की पत्रकारिता का मूल आधार सत्य, ईमानदारी और जनपक्षधरता रहा। सत्ता का दबाव हो या सामाजिक विरोध—उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। यही कारण है कि उनके द्वारा स्थापित अखबारों पर जनता का विश्वास तब भी था और आज भी कायम है।

तीन अखबार, जो आज भी पूर्वांचल की आवाज हैं

बाबू भूलन सिंह द्वारा शुरू किए गए तीनों अखबार आज भी सक्रिय रूप से प्रकाशित हो रहे हैं और पूर्वांचल की पत्रकारिता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं—

जनवार्ता — पूर्वांचल की सुबह की मजबूत आवाज

जनवार्ता एक हिंदी दैनिक है, जो सुबह प्रकाशित होता है और आज भी पूर्वांचल में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है। यह अखबार ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक किसानों, श्रमिकों और आम नागरिकों की समस्याओं को प्राथमिकता देता है। जनवार्ता आज भी निर्भीक, तथ्यपरक और जनहितकारी पत्रकारिता का प्रतिनिधि माना जाता है।

काशीवार्ता — वाराणसी की शाम की पहचान

काशीवार्ता आज भी वाराणसी का सबसे लोकप्रिय शाम का अखबार है। दिनभर की राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक घटनाओं को उसी दिन शाम तक पाठकों तक पहुंचाने की परंपरा काशीवार्ता ने बनाई, जिसे आज भी कायम रखा गया है। घाटों, गलियों और शहर के हर वर्ग में काशीवार्ता की नियमित उपस्थिति इसे वाराणसी की शाम की पहचान बनाती है।

आवाज़-ए-मुल्क — उर्दू पत्रकारिता की सशक्त परंपरा

आवाज़-ए-मुल्क पूर्वांचल का प्रतिष्ठित उर्दू अखबार है, जो आज भी नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा है। यह अखबार उर्दू पाठक वर्ग की सामाजिक, राजनीतिक और जनसमस्याओं को मजबूती से उठाता है। संतुलित, तथ्यपरक और निर्भीक रिपोर्टिंग इसकी पहचान रही है, जो वर्षों बाद भी बनी हुई है।

सहकारिता से समाज निर्माण

पत्रकारिता के साथ-साथ बाबू भूलन सिंह सहकारिता आंदोलन के भी प्रमुख स्तंभ रहे। उन्होंने सहकारिता को सेवा और आत्मनिर्भरता का माध्यम बनाया।

उनकी पहल पर स्थापित संस्थान—

1- उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ

2- दी वाराणसी होलसेल

3- सहकारी शीत भंडारण

4- नगरी सहकारी बैंक, वाराणसी

आज भी समाज के आर्थिक और सामाजिक विकास में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

राजनीति के मूक मार्गदर्शक

बाबू भूलन सिंह ने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उनकी राजनीतिक समझ और पकड़ इतनी प्रभावशाली थी कि बड़े नेता भी उनकी राय को महत्व देते थे। 

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पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी के वाराणसी प्रवास के दौरान मिंट हाउस उनका दूसरा घर माना जाता था। उस समय यह आम धारणा थी कि पूर्वांचल की राजनीति में उनकी सहमति के बिना कोई बड़ा निर्णय संभव नहीं।

पत्रकारिता की पीढ़ियां तैयार कीं

उन्होंने ईश्वर देव मिश्रा, ईश्वर चंद्र सिन्हा और मनु शर्मा जैसे वरिष्ठ पत्रकारों को मंच देकर पत्रकारिता की मजबूत पीढ़ी तैयार की, जिसकी छाप आज भी पूर्वांचल की मीडिया में दिखाई देती है।

विरासत जो आज भी जीवित है

1993 में उनके निधन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव ने गहरा शोक व्यक्त किया था। बाबू भूलन सिंह का जाना एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत था। आज उनकी विरासत उनके परिवार द्वारा आगे बढ़ाई जा रही है। दी वाराणसी न्यूज़ का संचालन वर्तमान में उनके सबसे बड़े भतीजे कैलाश नारायण सिंह के पोते आयुष सिंह द्वारा किया जा रहा है। बाबू भूलन सिंह की सच्ची, निर्भीक और जनपक्षधर पत्रकारिता की परंपरा आज भी दी वाराणसी न्यूज़ के माध्यम से पूरी मजबूती से आगे बढ़ रही है।