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कल वाराणसी में खुलेगी पूर्वांचल की सबसे बड़ी धर्मशाला, उपराष्ट्रपति और मुख्यमंत्री योगी करेंगे उद्घाटन

काशी और तमिलनाडु के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को एक नई पहचान मिलने जा रही है। रथयात्रा स्थित श्रीकाशी नाटकोटक्षेत्रम की भव्य धर्मशाला का उद्घाटन 31 अक्तूबर को देश के उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। यह धर्मशाला 140 एसी कमरों वाली 10 मंजिला इमारत है, जिसे पूर्वांचल की सबसे बड़ी धर्मशाला माना जा रहा है।

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उद्घाटन कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर बुधवार को लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के न्यू टर्मिनल बिल्डिंग में एडवांस लाइजनिंग सिस्टम (एएसएल) की बैठक हुई, जो दोपहर 12 बजे से करीब एक बजे तक चली। बैठक में वीवीआईपी सुरक्षा व्यवस्था की रूपरेखा तय की गई।

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जानकारी के अनुसार, 31 अक्तूबर को उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन विशेष विमान से वाराणसी पहुंचेंगे। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी के भी आने की संभावना है। कार्यक्रम के बाद वे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन कर सकते हैं।

वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोपहर करीब साढ़े तीन बजे एयरपोर्ट पहुंचेंगे। उनके साथ राज्य सरकार के कुछ मंत्री भी रहेंगे।


बैठक में सीआईएसएफ कमांडेंट सुचिता सिंह, एयरपोर्ट निदेशक पुनीत गुप्ता, डीसीपी गोमती जोन आकाश पटेल, एसीपी ट्रैफिक अंशुमान मिश्रा, एसीपी पिंडरा प्रतीक कुमार, एसडीएम पिंडरा प्रतिभा मिश्रा सहित कई विभागों के अधिकारी मौजूद रहे। सभी ने सुरक्षा और समन्वय व्यवस्था को लेकर विस्तृत चर्चा की।


तमिलनाडु और काशी का अटूट रिश्ता


काशी और तमिलनाडु के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध हजारों वर्षों से चले आ रहे हैं। काशी के हनुमान घाट, केदार घाट समेत कई क्षेत्रों में आज भी करीब 50 हजार से अधिक दक्षिण भारतीय परिवार निवास कर रहे हैं।

शास्त्रों में वर्णन है कि भगवान विश्वेश्वर की आज्ञा से अगस्त्य मुनि दक्षिण भारत गए थे, जिसके बाद काशी और तमिल संस्कृति का यह अद्भुत संगम स्थापित हुआ। तमिल के 63 शैव संतों में से एक श्रीअप्पर स्वामी ने भी अपनी काशी यात्रा के दौरान विश्वनाथ व गंगा की महिमा का वर्णन किया था।


वैदिक पूजन से होगा शुभारंभ


श्रीकाशी नाटकोटि के अध्यक्ष एल. नारायणन ने बताया कि उद्घाटन से पहले 31 अक्तूबर की सुबह 8:30 बजे वैदिक विद्वान विधिवत पूजन करेंगे। यह धर्मशाला न केवल तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाजनक ठिकाना बनेगी, बल्कि दक्षिण और उत्तर भारतीय परंपराओं के बीच सेतु का कार्य भी करेगी।