जनवार्ता, काशीवार्ता और आवाज़-ए-मुल्क बने काशी की पत्रकारिता के जीवित प्रतीक — मनु शर्मा जयंती पर गूंजा साहित्य का स्वर
प्रख्यात साहित्यकार पंडित मनु शर्मा जी की 98वीं जयंती पर काशी में भव्य आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में साहित्य और पत्रकारिता जगत की कई प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की। एमएलसी व भाजपा नेता धर्मेंद्र सिंह ने कार्यक्रम में शामिल होकर अपने संस्मरण साझा किए और काशी की गौरवशाली साहित्यिक परंपरा को याद किया।
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समारोह की अध्यक्षता बागेश्वर धाम सरकार के उपासक पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने की। इस मौके पर असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. एस.पी. सिंह बघेल, और कई साहित्यकारों व विद्वानों की उपस्थिति रही।
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| स्व. बाबू भूलन सिंह — जनवार्ता, काशीवार्ता और आवाज़-ए-मुल्क समूह के संस्थापक। | 
धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि काशी सदियों से साहित्य, पत्रकारिता और विचारों की भूमि रही है। उन्होंने अपने संबोधन में जनवार्ता, काशीवार्ता और आवाज़-ए-मुल्क जैसे समाचार पत्रों के संचालक, सहकारिता पुरुष बाबू भूलन सिंह का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बाबू भूलन सिंह ने पूर्वांचल के लेखकों, कवियों और पत्रकारों के लिए एक विशाल मंच तैयार किया, जहां हर रचनाकार को सम्मान और अभिव्यक्ति का अवसर मिला।
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धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि ‘जनवार्ता’ आज भी वाराणसी से प्रकाशित होता है और सुबह के समय शहर का सबसे भरोसेमंद अखबार माना जाता है। वहीं ‘काशीवार्ता’ शाम का लोकप्रिय दैनिक है, जो वाराणसी की स्थानीय खबरों के साथ सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों की प्रमुख जानकारी देता है।
उन्होंने विशेष रूप से कहा कि ‘आवाज़-ए-मुल्क’ अपने उर्दू संस्करण के लिए पूर्वांचल में आज भी प्रसिद्ध और निरंतर प्रकाशित होने वाला अखबार है। यह वही अखबार है जिसने बनारस से शुरुआत कर पूरे पूर्वांचल में अपनी गहरी छाप छोड़ी और अब भी नियमित रूप से प्रकाशित होकर उर्दू पाठकों के बीच विशेष स्थान बनाए हुए है।
धर्मेंद्र सिंह ने याद किया कि इमरजेंसी काल के दौरान जनवार्ता एक चर्चित अखबार रहा, जिसमें पंडित मनु शर्मा जी का लोकप्रिय कॉलम “संकटमोचन” प्रकाशित होता था। इसके साथ ही पंडित धर्मशील चतुर्वेदी का “अष्टावक्र” और चतुरी चाचा का “चलल्लस” कॉलम पाठकों में बेहद लोकप्रिय था।
उन्होंने बताया कि जनवार्ता का संपादन पंडित ईश्वरदेव मिश्र जी करते थे, जबकि ईश्वरचंद्र सिन्हा और श्यामाचरण प्रदीप जैसे वरिष्ठ संपादक उस समय इसकी रीढ़ बने हुए थे। जनवार्ता परिवार ने भुडकुड़ा के इन्द्रदेव सिंह, बाबू विवेकी राय जैसे तमाम नामचीन रचनाकारों को एक साझा मंच प्रदान किया।
धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि उनके छात्र जीवन में भी ‘संकटमोचन’ कॉलम की प्रतीक्षा हो
ती थी और आज भी “गांधी लौटे” जैसी रचनाएं उनकी स्मृतियों में ताज़ा हैं। उन्होंने कहा कि काशी के साहित्यिक गलियारों में कभी न रुकने वाली बैठकी संस्कृति आज भी इस शहर की पहचान है — चाहे वह सराय गोबर्धन हो, पिशाचमोचन या चेतगंज की गलियां।
अंत में धर्मेंद्र सिंह ने कहा —
“धन्य है काशी, जिसने ज्ञान और साहित्य की अनगिनत विभूतियों को जन्म दिया। हम सबका कर्तव्य है कि इन बैठकों और संवादों की परंपरा को जीवित रखें।”
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा, जो पंडित मनु शर्मा जी के सुपुत्र हैं, ने भी पिता की स्मृतियों को साझा किया और कहा कि यह उत्सव केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि साहित्यिक चेतना के पुनरुत्थान का प्रतीक है।
 
